दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी खुद को सीएमओ समझ चला रहा नगर परिषद, नियमो की धज्जियां उड़ाकर पहले किया निर्माण, फिर दिया निर्माण अनुमति आवेदन, पात्र जनता को किया योजनाओं से दूर

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(सुनील माली)
नीमच(सरवानिया महाराज)। वैसे तो लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार प्राप्त है, जो नियम एक आम नागरिक के ऊपर लागू होते हैं वह देश के सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति पर भी लागू होता है पर ऐसा देखने में कम ही आता है, हम बात कर रहे हैं नीमच जिले के जावद तहसील के सरवानिया महाराज की, जो नगर बने 10 साल हो चुके हैं, यहां की नगर परिषद हमेशा चर्चाओं में रहती है चाहे गौ माता का कार्यक्रम हो या रावण दहन हों या फिर कर्मचारी का हो। आज हम दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी की कार्यप्रणाली पर बात कर रहे है, सूत्रो से मिली जानकारी अनुसार नगर परिषद सरवानिया महाराज का एक कर्मचारी अपने आप को सीएमओ समझ बैठा है, सारे नियम ताक में रखकर वह उल्टे सीधे कामों के लिए जाना जाता है। यू तो नगर परिषद में हर छोटे बड़े निर्माण के लिए अनुमति लेने की व्यवस्था है, अगर नगर में किसी के छोटा सा निर्माण होता हैं तो नगर परिषद का यह कर्मचारी तत्काल संबंधित व्यक्ति क़ो नोटिस थमा देता है, अब बात आई खुद के ऊपर, नगर के बस स्टैंड वार्ड नंबर 15 में इनकी दुकान, मकान है। मकान के प्रथम मंजिल पर नगर परिषद से निर्माण की अनुमति लिए बिना ही निर्माण शुरू कर दिया, आप साहब ने निर्माण की अनुमति नहीं ली, यह तो वही बात हो गई जब सैंया भए कोतवाल तो डर किस बात का अंधेरी नगरी चौपट राजा की तर्ज पर काम हो रहा हैं। कोई रोकने टोकने वाला नहीं है, अब इसक़ो नोटिस थमाये कौन? यह तो खुद ही आमजन को नोटिस जारी करने वाला हैं, जब निर्माण मामला तूल पकड़ा नगर में चर्चा का विषय बना और इसकी कार्य प्रणाली पर सवाल उठने लगे तो आप साहब क़ो आनन फानन में निर्माण अनुमति का आवेदन देना पड़ा। इस दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी की बस स्टैंड स्थित कम्प्यूटर व फोटो काफी की दुकान है, जो है तो इसके भाई के नाम से है, लेकिन खुद दुकान का संचालन करता है, नगर परिषद के ड्यूटी समय पर भी इसक़ो कई बार दुकान पर देखा जाता रहा है। वैसे तो नगर परिषद में कोई व्यक्ति किसी काम से जाता है, तो उनसे सीधे मुंह बात नहीं करता है और वरिष्ठजनों का सम्मान भी नहीं करता है अब अंदर खाने खबर निकल कर आ रही है कि इसने कई रसूखदार लोगों के अपने सिस्टम से कई श्रमिक कार्ड बना दिए, पांच-छः ठेकेदारों के नाम की सील दुकान पर रखी देखी गई, यह अलग बात है कि वे ठेकेदार है भी या नहीं, ये तो जांच का विषय है, श्रमिक आवेदन पर ठेकेदार की सील लगाकर कई श्रमिक कार्ड नगर परिषद से अपने स्तर पर जारी करवा दिए। श्रमिक कार्ड इसने किस प्रकार से बनाये, यह सब नगर की जनता अच्छी तरह जानती हैं, इस कर्मचारी की वजह से नगर के कई पात्र मजदूर श्रमिक कार्ड से वंचित हो गये है। शासन की योजनाओं का लाभ भी नहीं ले पा रहे हैं। यदि श्रमिक कार्ड की वास्तविक व निष्पक्ष जांच हो तो कई श्रमिक कार्ड निरस्त हो जावेगे। कर्मचारी नगर का स्थानीय होने से हर बार नगर परिषद अध्यक्ष की नजदीकीया हासिल कर अध्यक्ष का खास व विश्वास पात्र हो जाता हैं। जिससे इसको कोई कहने सुनाने वाला नही, इसे किसी बात का भय डर भी नहीं है। यह वही कर्मचारी है जो प्रधानमंत्री आवास योजना में आवास लेने में भी पीछे नहीं रहा है, इसने खुद के घर में तथा अपने परिवार के लोगों के प्रधानमंत्री आवास स्वीकृत करवा दिये, इस कर्मचारी की कार्य प्रणाली की वजह से कई पात्र गरीब आवासहीन व्यक्ति आवास योजना से वंचित हो गये। उस समय इसने खुब मांझा सूता, जो नगर में काफी चर्चा में रहा, इस कर्मचारी के वजह से आमजन क़ो छोटे-छोटे काम के लिए नगर परिषद में चक्कर काटने पड़ते है। इसकी फोटो कॉपी व कम्प्यूटर की दुकान नगर परिषद के कर्मचारीयो की दुकान पर मेहमान नवाजी के चलते काफ़ी जोरो से चल रही है। नाम इसके भाई का परन्तु काम खुद का रहता है, यह नगर परिषद में जब भी बैठता है, वहां आए आमजन व हितग्राही के नगर परिषद से संबंधित छोटे-छोटे काम अटकाने व नियम में उलझाने की कोशिश करता है, तब व्यक्ति इसकी मनोदशा को समझ जाता हैं। कौन नगर परिषद के चक्कर नही काटे, फिर व्यक्ति मज़बूरी में इसकी दुकान पर इससे संपर्क करता हैं, तब जाकर व्यक्ति का काम बन पाता। इस कर्मचारी की दुकान पर जाना आदमी की मजबूरी बन जाती हैं। नगर परिषद की फाइलें कई बार इसकी दुकान में नगर लोगो ने काउंटर पर देखी, वैसे तो शासन का नियम है कि शासकीय योजना की सामग्री शासकीय भवन में रहे और शासकीय भवन से ही हितग्राही को वितरित हो, लेकिन इन साहब की बात ही निराली है, इसने अपना हित साधने के लिए श्रमिक़ो की साइकिले अपने बस स्टैंड स्थित मकान पर रखी हैं। श्रमिकों को अपनी ही साइकिल लेने के लिए इसकी दुकान पर कई घंटे इंतजार में बैठना पड़ा, फिर साहब अपने ही मकान से दुकान पर श्रमिकों को साइकिले अपने रुतबे व हिसाब से देते हैं, साइकिले श्रमिकों को किस ढंग से किस प्रकार दी गई जिसकी भी नगर में काफी चर्चा रही थी। इस कर्मचारी के कारनामों की फेहरिश्त बहुत लंबी है, प्रधानमंत्री आवास की बकाया किस्त हितग्राही के खातों में डलवाने के लिए हितग्राही क़ो नगर परिषद के कितने चक्कर काटना पड़े पहले नियमों में उलझाया फिर बाद में किस तरह उनके खाते में बकाया किस्त डाली गई, यह सब अब हितग्राही दबी जबान में खुद ही इस कर्मचारी के कारनामें, करतूते व हालात नगर में बयां कर अब उजागर कर रहे है।

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